Shikha Arora

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लेखनी प्रतियोगिता -23-Jun-2022 - उतरन


एक दिन ऐसा आया था,
दिल ने यह फरमाया था।
कपड़े हुए बच्चों के छोटे,
कुछ बढ़े, कुछ हो गए मोटे।
निकाले अलमारी से जब कपड़े,
कुछ तो बिल्कुल न गए थे रगड़े।
पर अब क्या हो सकता था,
जबरदस्ती पर फट सकता था।
सोचा मैंने क्या करूं उतरन का,
नए कपड़ों पर भी भारी मन था।
पुराने कपड़े जो उतर गए मन से,
बच्चे लगाते नहीं जिनको तन से।
लेकर गई मैं एक आश्रम में,
बड़े जतन से कर पराश्रम मैं। 
नई पुरानी उतरन जो मेरे लिए बेकार,
जिनसे हम सब ही हो गए थे बेजार।
देखकर बच्चे वहां के खुश हो गए सारे,
लाइन लगा खड़े हो गए वक्त के मारे।
मेरी उतरन काम आ गई उन सबके,
छा गई चेहरे पर मुस्कान उन सबके।
सच कहूं तो चैन मुझे भी बहुत मिला,
नए कपड़ों का भी नहीं रहा था गिला।
सोच लिया तब से सब बच्चों ने भी,
उतरन भी नहीं फेंकेंगे हम तो कभी।
सुकून पूरे परिवार को जो मिल गया,
सही एक रास्ता अब हमें दिख गया।।


दैनिक प्रतियोगिता हेतु
शिखा अरोरा (दिल्ली)

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5 Comments

Punam verma

24-Jun-2022 11:19 AM

Nice

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Shrishti pandey

24-Jun-2022 10:44 AM

Nice

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Abhinav ji

24-Jun-2022 07:41 AM

Nice👍

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